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Jamghat - जमघट

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About us

जमघट एक जगह है, चौपाल हैं जहाँ हम और आप बैठ के नये और पुराने (कालजयी) हिन्दी की बातें करें |
हिन्दी की कवितायें, रचनाओं का प्रचार करें |
जमघट एक जरिया बनना चाहते है लोगों के लिए जहाँ लोग खुले दिमाग से , बिना किसी दबाव के अपनी राय रख सकते हैं | फिर चाहे वो कला हो , सिनेमा हो या फिर राजनितिक गतिविधिया पे कोई अछा सा सटायर | संगीत , साहित्य, लेखन,कविता , टेक्नोलॉजी , किताबों से लेके फोटोग्राफी तक की जानकारी या तो बाँट सकते हैं या ले सकते हैं किसी भी भाषा में | हमसे जुड़ने वालों का हम तहे दिल से स्वागत करते हैं |

चाँद लाइनें आपके लिए कैफ़ी साहब के कलम से -

ख़ारो-ख़स तो उठें, रास्ता तो चले
मैं अगर थक गया, काफ़िला तो चले

चाँद-सूरज बुजुर्गों के नक़्शे-क़दम
ख़ैर बुझने दो इनको, हवा तो चले

हाकिमे-शहर, ये भी कोई शहर है
मस्जिदें बन्द हैं, मयकदा तो चले

इसको मज़हब कहो या सियासत कहो
ख़ुदकुशी का हुनर तुम... show more
सिखा तो चले

इतनी लाशें मैं कैसे उठा पाऊँगा
आज ईंटों की हुरमत[2] बचा तो चले

बेलचे लाओ, खोलो ज़मीं की तहें
मैं कहाँ दफ़्न हूँ, कुछ पता तो चले |

हमारी बस यही छह है की लोग अपने देश की संस्कृति , संस्कार और हिंदी को ना भूलें साथ में सभी भाषाओं का प्रयोग करें | show more

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  • Referral from February 8, 2015
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